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परदेश मे रहने वाले

आज दिनांक ८.७.२४ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति
परदेश मे रहने वाले:
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कितने निष्ठुर होते हैं परदेश मे रहने वाले,
भूले बैठे हैं स्वदेश को और वनते हैं धनवाले।

क्यों स्वदेश और निज परिजन की फ़िक्र नहीं है कोई,
क्यों स्वदेश और परिजन से प्यार नहीं है कोई।

देश का ज़र्रा ज़र्रा इनको सदा पुकारा करता
परिजन का भी  इनकी यादों मे रहता है दिल दुखता।

परदेश का उच्छृंखल जीवन इनको आकर्षित करता,
नहीं सोचते एक पल को भी इसका फल घातक होता।

भारतीय जीवन शैली सर्वोत्तम सुख कारक है,
आत्म नियंत्रण सिखलाती और सदा स्वास्थ्य कारक है।

वृद्धावस्था मे ही इसके फल,कुफल मिलते हैं,
तब उपचार न संभव होता अनेक कष्ट मिलते हैं।

क्यों परदेश मे जा कर ये सब अनाहार कर लेते,
पशु भोजन खा कर क्यों ये भी  पशुवृत्ति अपनाते।

यथा भोजन तथा बुद्धि नियम को‌ क्यों भूल जाते हैं,
परदेश मे रहने वाले क्यों प्रस्तर होते जाते हैं।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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